मुरालेज आर्किटेक्चर स्पेशियल नैरेटिव’ पुस्तक का हुआ विमोचन
लखनऊ।यूपी की राजधानी लखनऊ में ‘मुरालेज आर्किटेक्चर स्पेशियल नैरेटिव’ पुस्तक का विमोचन 11 अगस्त (सोमवार) को गोमती नगर स्थित होटल ताज में आयोजित कार्यक्रम में संपन्न हुआ। इस महत्वपूर्ण अवसर पर एन. सी. बाजपेई, लेखक सविता अग्रवाल, अतुल कुमार गुप्ता, एन. एन. उपाध्याय और दिशा नियोगी समेत कई गणमान्य व्यक्तियों ने भाग लिया।
यह पुस्तक मुरालेज आर्किटेक्चर स्पैशियल नैरेटिव वरिष्ठ वास्तुकार अर्किटेक्ट सविता अग्रवाल द्वारा लिखा यात्रा है, जो मुरालेज वास्तुकला फर्म के पाँच दशकों के कार्यों को सामने लाती है। इस वास्तुकला मोनोग्राफ में, मुरालेज ने भारतीय वास्तुकला की सोच और अभ्यास में आए रोचक परिवर्तन को दस्तावेजीकृत किया है। जहाँ भव्य और सुसज्जित इमारतों से आधुनिकतावादी, न्यूनतंवादी और सतत डिजाइन की ओर रुझान देखा गया है। पुस्तक में 275 से अधिक फोटोग्राफ्स और 161 चित्रण शामिल हैं, जो भरजाइन सबसे प्रभावशाली वास्तु फर्मों में से एक की विकास यात्रा को दर्शाते हैं।चाहे वह सार्वजनिक अवसंरचना हो. आवासीय परिसरों का निर्माण हो, वाणिज्यिक आंतरिक डिज़ाइन हो या अन्य परियोजनाएँ।

अर्किटेक्ट सविता अग्रवाल ने कार्यक्रम में आए हुए गणमान्य लोगों को पांच दशक सफर को साझा करते हुए कहा कि यह कथा केवल इमारतों की नहीं, बल्कि शहरी भारत के बदलते परिवेश की भी है। जहाँ स्थान को केवल डिज़ाइन नहीं किया जाता, बल्कि उसे एक नई दृष्टि से पुनः कल्पित भी किया जाता है। यह पुस्तक रूप और कार्य दोनों का उत्सव है, जो पाठकों को उन परियोजनाओं की गहराई में ले जाती है. जो सरकारी अस्पतालों और हवाई अड्डों से लेकर लग्ज़री कॉन्डो और विरासत-प्रेरित स्थलों तक फैली हुई हैं।
पुस्तक के बारे में बात करते हुए सविता अग्रवाल कहती हैं कि वास्तुकला केवल इमारतें बनाने का कार्य नहीं है। यह ऐसे स्थानों को रचने की प्रक्रिया है, जो लोगों, स्थानों और समय की प्रतिक्रिया में उत्पन्न होते हैं। मुरालेज हमारी विकास यात्रा की कहानी है।एक ऐसी फर्म की, जिसने भारतीय मूल्यों में जड़े रहकर समकालीन दृष्टिकोण को अपनाने का प्रयास किया है।
मुख्य अतिथि पूर्व मुख्य सचिव नवीन चंद्र बाजपेयी ने कहा कि वास्तुकला केवल इमारतें खड़ी करने का काम नहीं करती, बल्कि यह किसी युग, समाज, संस्कृति, राजनीति और पर्यावरण की एक सशक्त अभिव्यक्ति और गवाही भी होती है। जब हम किसी शहर की पुरानी या नई इमारतें देखते हैं, तो वे उस समय के आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक परिवेश की कहानी कहती हैं, यही वास्तुकला की गवाही है।
पूर्व प्रमुख सचिव एन. एन. उपाध्याय ने कहा कि वास्तुकला सदियों तक उस आर्किटेक्ट की कला को जीवित करती है, जिसे इतिहास के पन्नों पर अमर कर देती है, यह गहन और प्रेरणादायक है। यह कथन न केवल वास्तुकला की शक्ति को उजागर करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि एक आर्किटेक्ट की कल्पना, मेहनत और दृष्टि समय से परे जाकर कैसे अमर हो जाती है। ईंट, पत्थर और डिज़ाइन से बना ढांचा केवल एक निर्माण नहीं होता।वह उस रचनाकार की आत्मा का प्रतिबिंब होता है, जो आने वाली पीढ़ियों को उसकी उपस्थिति का अनुभव कराता है।

जयपुर की हवेलियाँ, कोलकाता के कॉलोनियल भवन ये सभी अपने-अपने युग के आर्किटेक्ट्स और उनके दृष्टिकोण की जीवित गवाही हैं।
इस प्रकाशन पर टिप्पणी करते हुए, त्रिशा डी नियोगी, मुख्य संचालन अधिकारी, नियोगी बुक्स ने कहा: “मुरालेज भारतीय वास्तुकला के बदलते स्वरूप की एक सशक्त गवाही है। इस दृष्टिगत समृद्ध और विचारोत्तेजक पुस्तक के माध्यम से, हम भारतीय डिज़ाइन की उस कहानी को संरक्षित और साझा करना चाहते हैं जो विभिन्न युगों, शैलियों और संवेदनाओं को जोड़ती है।
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